संदर्भ: जय तथा विजय नामक दो भाई विष्णु के असीम भक्त तथा वैकुंठ में आधिकारिक रूप से नियुक्त द्वारपाल हैं। जब ब्रह्मा के मानसपुत्र, श्रीविष्णु से भेंट करने आते हैं तो उनकी वास्तविक पहचान से अनभिज्ञ होकर वह उन्हें प्रवेश करने की आज्ञा नही देते , जिसे अपना अपमान मानकर वे दोनों भाइयों को श्राप देते हैं कि उन्हें धरती पर सामान्य मानव के समान अनंत काल तक रहना होगा ।अपने भक्तो के अनुरोध व उनकी विवशता को समझते हुए श्रीविष्णु उन्हें दो विकल्प देते हैं :-
१) वह दोनों सात जन्मों तक विष्णु के भक्तों के रूप में सामान्य मानव जीवन व्यतीत करेंगे
२) वह अगले तीन जन्म तक विष्णु के शत्रु बनेंगे तथा उनका उद्धार विष्णु के ही किसी अवतार के माध्यम से होगा।